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कविता

इस सुकूते ‍फ़िज़ा में खो जाएँ

फ़िराक़ गोरखपुरी


वुअसते - बेकराँ में
आसमानों के राज हो जाएँ

शब्दो-नाशाद हर तरह के है लोग
किस पे हँस जाएँ किस पॅ रो जाएँ

राह में आने वाली नस्लों के
ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएँ

क्या अजव तेरे तर-दामन
सबके दाग़े-गुनाह धो जायें

ज़िन्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएँ

 

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